Saturday, 3 March 2018

Mazhab to sirf baarish ki bauchhar hai...

करीम
मेरा एक दोस्त हैं जिसका नाम करीम हैं,
उसे लगता हैं मेरी हर ग़ज़ल ताज़ातरीन हैं !
ज़िन्दगी जीने का वो बड़ा शौक़ीन हैं
अल्लाह पर भी उसको बहुत यकीन हैं !
अपने मोहल्ले का वो तबलची नामचीन है
और मीठे से ज्यादा उसको पसंद आता नमकीन हैं !
वो कहता हैं कि मज़हब तो बस जज्बाती ज़मीन हैं
वहाँ खड़े हो जाओ जहा अपना-अपना यकीन हैं !
असल मोहब्बत तो इंसानी भाईचारा और ये सरज़मीन हैं
इससे गद्दारी मतलब खुदा की तौहीन हैं !
मैं जानता हूँ इस मुल्क में ऐसे न जाने कितने करीम हैं
पर उनमे न शामिल अब मेरा दोस्त करीम हैं !
क्युकी कल दंगो में मारा गया करीम हैं
और उसके गम में मेरी ग़ज़ल ग़मगीन हैं |
 

केदार
मेरा एक दोस्त हैं जिसका नाम केदार हैं
वो कहता हैं मेरी हर कविता भगवान का चमत्कार हैं !
दिखने का वो सीधा सा और पेशे से लुहार हैं
मेहनत की रोटी खाता वो आदमी होनहार हैं !
वो मानता हैं कि ये धरम-वरम तो बस बारिश की बौछार हैं
कही भी भीग लो सब कुछ कुदरत का उपहार हैं !
असल प्रेम तो ये मिट्टी और मानवीय सदाचार हैं
इससे वफादारी मतलब भगवान की जयकार हैं !
मैं जानता हूँ इस देश में ऐसे ना जाने कितने केदार हैं
पर उनमे अब ना शामिल मेरा मित्र केदार हैं !
क्योकि कल दंगो में मारा गया केदार हैं
और उसकी कमी से मेरी कविता बेकार हैं !